तनहा से जबसे हो गये हम, खुद से खफा से हो गये हम, रात भर चलता रहा यादों का सफर, तेरे ख्यालों में इतना खो से गये हम..!

मुसाफिर हूँ तनहा सा में, बेखुदी के आलम में डूबा सा में, वक़त भी जिससे रूठ गया, हूँ एक बेबस लम्हा सा में..!

भीड़ में तनहा रहते हैं, कुछ इस कदर तेरी यादों से जुड़े रहते हैं, जिस दुनिया में तुम छोड़ गये हमें, हम अब इस दुनिया से भी बेखबर रहते हैं.!

अकेले हैं इस दौर में ज़िन्दगी के, मोहब्बत यहाँ आजमाईश सी है, इश्क़ की राहों से गुज़रे तो जाना, वफ़ा पे काबिज़ यहाँ बेवफाई सी है..!

तनहा सी ज़िन्दगी और तनहा से हम, भटकते रहे यूँही तनहा रास्तों पे हम..!

कोई हमदर्द नहीं, कोई हमसफ़र नहीं, गुज़रते रहे हम फिर भी तनहा रास्तों पे..! 

दिन तनहा है, रात रुस्वा है, अब तो ऐसे गुज़रता हमपे हर एक लम्हा है..!

तन्हाई का आलम भी क्या आलम है, हर लम्हा अब मेरा इसमें शामिल है..!

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