फ़ुर्सत में याद करो तो चले आये हम, यूँ तो तन्हा हम भी हैं मगर फिजूल नहीं.
दुआ मांगना भी ज़हर जैसा लगता है, इस कदर हम ज़िंदगी के सताये हुए हैं.
उन्हें कोई ख़ुशी भी गवारा नहीं करती, जो ग़म में रहने के आदी हों गये हों.
ज़ख़्म जितने गहरे होते हैं, उदासी उतनी ही बेहतर लगती है.
समज़ना हो तो ख़ामोशी को समझ जाना, दर्द में रहने वाले ज़्यादा हिसाब-किताब नहीं करते.
उस दर्द की कीमत क्या लगाई जाये, जो किसी अपने ने मुफ़त में दिया हो.
जो आँखें अक्सर उदास रहती हैं, वो दिल में अनेकों ग़म समेटे होती हैं.
ख्वाबों को पलकों से बिगोते आ रहे हैं, लम्हें जो ग़मों से डूबे रहते थे कभी. !
ज़िन्दगी तो सिर्फ एक भ्रम के जैसी है, जो सिर्फ़ मौत की आहट पर टूट जाता है.
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