आज़माना गर इश्क़ की अदा है, हम भी मोहब्बत में लुटने को तैयार हैं.
जिसकी उंगलियाँ पकड़े ख्वाहिशें पलती हैं, जिसके चरणों में जन्नत बसती है। शत-शत नमन है एक पिता के प्रेम को, जिसके कंधों पे उसकी औलाद पलती है।
जैसे हनुमान जी के मन में राम बसते हैं, ऐसे ही मेरे पिताजी मेरे मन में बसते हैं।
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वो पहली बार की तुम्हारी नज़र, हमारी नींद की दुश्मन बन गयी, तुम्हारे ख़यालों से पूरा दिन गया, और तुम्हारी हसरतों में रात ढल गयी।
दुनिया की सारी दौलत भी कुछ नहीं, मेरे पिताजी के रुतबे के आगे।
लोग पूछते हैं जब, किस बात का ग़रूर है, ग़रूर इसी बात का है के रब ने मुझे मेरे पिता जैसा बनाया।
माँ-बाप के कदमों में जन्नत रखना, तो खुदा तुमसे कोई ज़िंदगी में कुछ न मांगेंगे हम।
मैं कैसे मान लूं के रब है नहीं, जब मैंने पिता के रूप में रब को पा लिया।
तलाश में जिसकी रहता है ये दिल, हर पल हमसे जिसकर करता है ये दिल, वो ख़्वाब है या फिर हक़ीक़त पता नहीं, पर उसी की ही तमन्ना में रहा करता है ये दिल।
मेरे पिता मेरे रब हैं, उनके आगे कायनात भी कम हैं, वो मेरे चांद हैं सूरज भी, उन्ही से रोशन मेरा सारा संसार हैं।
ये जो इतनी धन-दौलत भी पास है, उससे भी कहीं ज्यादा माँ-बाप का साथ है।
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