ख़्वाहिश थी ख़ुशियों भरे महल सजाने की, लेकिन ग़म और हालातों ने चुन लिया हमें .

वक़्त ने एहसास करा दिया हमारे तन्हा होने का, वरना हम तो कल भी अकेले थे और आज भी अकेले हैं 

चुप-चाप ज़िंदगी बसर हो जाए तो क्या है, ना किसी की चाहत ना किसी से कोई गिला है .

तुम बदल जाओ तो वक़्त का तक़ाज़ा है, हम बदल गए तो बेवफ़ा हो दिए.

हर रोज़ मौत को चुनना हो तो भी मौत ही चुनेगे, तूझे ज़िन्दगी समझा शायद इसी ही सजा के लिये.

मत पूछ हमारे दर्द की इन्तहां, बहुत गवा कर आये है जहा तक आते.

हक़ीक़त का लिबास जब उतरता है, जमीर का असली चेहरा तब दिखता है. 

मुनाफा ढून्ढ ना अंजाम रहा हर रिश्ते का, और बहुत घाटे से गुजरी जिन्दगी अपनी.,

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