हर बार यूँ ही मुस्कुराना इतना जरुरी नहीं, कुछ लम्हे उदासी भरे भी बांट लेते तुम।

सारी दुनिया बेवफा सी लगती है अब, वफ़ा ही कुछ इस हद तक कर चुके हैं । 

आज दर्द में हम हैं, तो किसी को ख़बर नहीं, ये वही लोग हैं जिनका दर्द बाँटने वाले पहले हम ही थे। 

अब तो अकेले रहना ही मुनासिब है, आजकल जो साथ देते हैं, वोही दगा देते हैं। 

इन फासलों की दूरी को तय करना है, तन्हा इस सफर को तय करना है। 

तन्हाई का आलम भी क्या आलम है, हर लम्हा अब मेरा इसमें शामिल है..! 

तनहा सी ज़िंदगी और तनहा से हम, भटकते रहे यूँही तनहा रास्तों पे हम, 

जख्मो की आदत सी हो गयी है, अब तो इनसे दवा का काम लेते हैं, 

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