एक शिक़ायत तो है तुमसे, हज़ारों दिलकश नज़ारे है यहाँ, मगर फिर भी ये निगाहें, आखिर तुम्हें ही क्यों ढूंढ़ती है.

आ भी जाओ कभी रूबरू हमारे, दिल अपना नाम करदूँ तुम्हारे, ये हार और जीत जाने की बात नहीं है, ये मोहब्बत है, है बस में नहीं हमारे.

मोहब्बत को मुश्किल बना रहे हो, जो इतने जुलम डा रहे हो, रंजिश है कोई हमसे तो बता दो, एक तरफ सता रहे हो और फिर मुस्कुरा रहे हो.

जो तेरे ना हुये, हम किसी के ना होंगे, हमारी मोहब्बत के किस्से, इस जहाँ में बेशूमार होंगे.

हवाओं में इतनी महक सी क्यों है, उल्फ़त बनके क्या गुल गये हो इनमें, सांसों का शुक्रिया अदा करें, के तुम्हारा, अब जितनी भी आतीं हैं, बा-कमाल आती है.

कुछ लफ़ज़ तुम ही देदो अब उदार के. लफ़ज़ ठीक से बयां ना हो तो ये पल कोसते हैं. कैफियत के आलम में तो दोनो ही है. हम उनको ढूंढ़ते हैं और वो हमें ढूंढ़ते हैं.

उसकी चाहतों का असर ये हुआ है, दिल हसरतों में लिपटा हुआ है, कुछ नहीं याद सिर्फ उसके सिवा, उसके एहसास से दिल निखरा हुआ है.

किसी मोड़ पर गर कहीं छोड़ जाना हो, तो पहले से बता देना, वो क्या है कि, मिजाज-ए-इश्क़ के मरीज़ का, इलाज मिल जाना बड़ा मुश्किल है.

लफ़ज़ कह ना पायेंगे, बिन तेरे रह ना पायेंगे, रूह में बस्ते हो तुम, तुमसे दूर कहां जायेंगे.

तुम ख़ुश्बू बनके, ज़िन्दगी में गुल गये कुछ ऐसे, जीवन इतना महकने लगा है, ये दिल अब ज्यादा खिलने लगा है.

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