“ना-जाने कितने ग़म बसे हैं इस दिल में, जरा सा मुस्कुरा दो तो दिल वज़ह पूछता है.”
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“साँसों की तो बस किश्तें चूका रहे हैं, जीने के लिये तो कोई खास वजह भी नहीं अब. "
”
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“ए
क ही रास्ता है और उसकी भी मंज़िल नहीं,
ज़िन्दगी मौत की देहलीज़ पे ले आयी हो जैसे.”
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“कतल होते आ रहे हैं जज़्बात मुसल-सल, अल्फ़ाज़ों ने हमारे लिये मुक्कम्मल मौत चुनी हो जैसे. ”
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“ह
मसे क्या पूछते हो की हम चुप क्यों हैं, बातों में तो आपकी भी अब वो वाली बात नहीं है. .”
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“
ग़म में गुमशुदा हो चुके हैं, तुमसे जुदा होकर फ़ना हो चुके हैं. कोई आरज़ू अब इस दिल में घर नहीं करती, इस कदर खुद से बेवफा हो चुके हैं.”
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“हर रोज़ मरना खुअहिशों से,
ये ज़िन्दगी इक सज़ा हो जैसे,
साँसे भी खुद से खफा हो जैसे,
ये जीना भी इक गुनाह हो जैसे. ”
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“आँखें मिलने पर कभी नज़रे जुकाते थे,
वो आज हमसे नज़रें चुराने लगे हैं,
खण्डार हो चूका हमारे सपनों का मकां,
और वो महलों में घर सजाने चले हैं.”
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“खुश रहने का हक़ नहीं है हमें, तुम्हारी बातों से ऐसा लगता है, दिल की खता अब ग़म की वज़ह बन गयी, जीना भी ज़हर पीने जैसा लगता है. ”
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“हज़ारों शिकवे हैं ज़िन्दगी से, किसी और से क्या शिकवा करें, ग़म इतने रास आने लगे अब, किसी और से इनका ज़िकर क्या करें. ”
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