निगाहें भर के देखना भी तो ज़रूरी रहा, ये फ़ासले फिर मिलने की इज़ाज़त जो नहीं देते।
एक ही रूह और उसका सकूँ भी तुम, इश्क़ होना वाजिब क्यूँ ना हो फिर।
कितनी रातें जानती हैं हमारे तन्हा होने का सफ़र, हम मगर मुसाफ़िर भी तो एक ही ठिकाने के ठहरे।
खोई खोई सी बातें भी ज़िक्र करती हैं तुम्हारा, ऐसे हाल में दिल का फिर लापता होना तो बनता है।
पहली बार नज़रों से दिल पे दस्तक हुई है, अनजान सी आहट इस दिल पे हुई है, सांस में क़ैद जैसे कोई कहानी सी हुई है, ऐसे लगा कि जैसे मोहब्बत हुई है।
मिलना हमें वहाँ यहाँ ज़िन्दगी जन्नत जैसी हो, मिलना हमें वहाँ यहाँ चाहत की कोई हद ना हो, यहाँ खामोशियाँ भी अक्सर बातें किया करें, यहाँ ख़्वाबों का रास्ता तुम तक आके ख़त्म हो जाए।
हमारे पल तुम्हारे लम्हों में शामिल हो जाएं, हज़ारों दफ़ा ये दिल इसी ख़्वाहिश में जीया है, तुम्हारा नाम इसमें गूंजे तो ये मन मंदिर हो जाए, इस मोहब्बत को तो हमने नाम तो इबादत का दिया है।
तू दुआ के जैसे ज़िन्दगी में शामिल हुई है, लगता है कि रूह जैसे सुकून से वाकिफ हुई है, खुद की कहाँ अब हमको खबर रहती है, रूह हमारी जबसे मोहब्बत से वाक़िफ हुई है।,
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