एक बार तो हमसे वफ़ा की बात कर लेते तुम, तो तुम्हारी खातिर हम सारे ज़माने से भी बेवफा हो जाते.
हम तो थे सकूं-ऐ-उल्फत तेरी तलाश में, लेकिन इस इश्क़ से ग़म ही हासिल हुआ हमें.
उल्फत में गम के मारे हैं, हम तो आज भी तुम्हारे हैं.
अश्क़ बहते नहीं हम फिर भी रोते हैं, जज़्बातों के दरिया को कौन बांदे रख सकता है.
क्या खूब उसकी चाहतों का असर रहा, दिल ने सब मिटा दिया उसकी यादों के सिवा.
वो आज कल अजनबी से बने घूमते फिरते हैं हमसे, जिनसे कभी बरसो की जान-पहचान थी अपनी.
कैद हैं अब भी वो लम्हें जो कभी थे सीने में, आज भी उनकी खुसबू से साँसे महक जाती हैं.
आँखे अश्कों में डूब जाती हैं, आज भी जब तुम्हारी याद आती है.
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