हादसा-ऐ-इश्क़ जब हो जाये तो दिल क्या करे,
तबियत-ऐ-नासाज़ हो जाये तो दिल क्या करे,
नज़रों की इनायत जब हो जाती है,
मरीज़-ऐ-इश्क़ को तब जन्नत नसीब हो जाती है..!
हादसा-ऐ-इश्क़ जब हो जाये तो दिल क्या करे,
तबियत-ऐ-नासाज़ हो जाये तो दिल क्या करे,
नज़रों की इनायत जब हो जाती है,
मरीज़-ऐ-इश्क़ को तब जन्नत नसीब हो जाती है..!