सुकून का ठिकाना ढूंढ़ने निकला था ये दिल, और  ज़िन्दगी ग़मो से तालुक करा बैठी. 

Sukun Shayari

गर उल्फत में होता सकूने-बसर, हम वफ़ा के नाम पर कबका बिक गये होते. 

हम भी चाहते थे सकूँ के पल, मगर ये ज़िन्दगी हमसे बेवफा निकली. 

बैठे हैं सकूं बनके वो हमारे इस दिल में, और हम उनकी यादों में ठिकाना ढूँढ़ते हैं.

है नज़रें भर सकूँ इस दिल का बढ़ा ताजुब है ना जाने वो शक्श क्यों लगता है इबादत के जैसा 

क्या इश्क़ में तुम सकूँ चाहते हो, है फरेब से जड़ा फिर को चाहते हो, मिलता नहीं सिला यकीं के नाम पर, छोटी सी ज़िन्दगी से ये क्या चाहते हो. 

मुझे मेरा हाल सकूँ-ए-तलब है, ना शिकवा है ना कोई रंजिश है, लम्हों ने भी खेल खेला है, वीरान है दिल का मकां, फिर भी उनका बसेरा है. .

अब जब सकूँ को नीलाम कर आये हो हमारे, तो हमसे खुशियों का ठिकाना क्या पूछते हो, जब हक़ीक़त से हमारी रूबरू करा ही दिया तुमने जो, फिर दिखावे की बस्ती में हमें किस लिए ढूंढ़ते हो. 

हमेशा परवाह करते रहना उनका जरुरी तो नहीं, मोहब्बत जितनी भी हो जाये मजबूरी तो नहीं, है कैद में सकूं दिल का वफ़ा के नाम पर, बातें जितनी भी होती रहें जरुरी हैं मगर, मगर हर बात पे मुस्कुराना हमारा जरुरी तो नहीं. 

अब जब सकूँ को नीलाम कर आये हो हमारे, तो हमसे खुशियों का ठिकाना क्या पूछते हो, जब हक़ीक़त से हमारी रूबरू करा ही दिया तुमने जो, फिर दिखावे की बस्ती में हमें किस लिए ढूंढ़ते हो. 

Thanks For Watching. 

For more updates visiit our website.