हसरतों का कतल कर दिया,बढ़ी बेरहमी के साथ, बेवफाई का खंजर यूँ चलाया, इस दिल के आर पार.

क्यों फांसलों को इतना बढ़ा रहे हो, क्या मोहब्बत तुम्हारी अब दम तोड़ रही है.

कितने ख़ुदग़रज़ कितने बेवफा हो, दिल में किसी और का जिक्र, और होंठों पे हमारा नाम रखा है.

मोहब्बत में ऐसा क्यों होता है, जिसे दिल से चाहो वही बेवफा होता है.

ओ बेवफा, सुन हमसे वफ़ा का सलीका, आज भी तेरी यादों को हमने, दिल में शुमार रखा है.

क्या बताएं कैद इ इश्क़ में कोई रिहाई नहीं है, खली खली दिल है, इसकी कोई सुनवाई नहीं है.

ना वो चाँद है ना सितारें हैं, पूछें किस से दगाबाज सारे हैं, कोई तकता नहीं राह यहाँ किसी की, मतलब के रिश्ते में दगाबाज़ सारे हैं.

हाथों की लकीरों पे ऐतबार क्या रखे हम, वोही अपना न  बना जिसे हाथों की लकीरों में देखा करते थे.

फांसले होने का एहसास करा गया, वो तेरा मुझे देखनाजरे फेर जाना.

ग़मो से हमारी पहचान कराने वाले, तुझे तो मरते दम तक नहीं भूलेंगे.

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