चाहा है तुम्हें चाहत की हद तक, मेरी हर खुआहिश है सिमटी सिर्फ तुम्हीं तक..!
है दिल की नासाज़ी इसमें धड़कनों का क्या दोष है, हो रहे वो रूह पे काबिज़ और लब खामोश हैं।
उल्फ़त से हमारा कोई लेना देना न था, और तुमने ही हमारे दिल का पूरा हिसाब कर डाला..!
कोई वजह दिल पे तरस खाने की नहीं है, चाहत ही इससे ऐसी लगाकर बैठे हैं।
मोहब्बत की आबरू पे मिट जाने दे, हमको वफ़ा की राह पर चलते चलते।
है नहीं धड़कनों पे कोई काबू रहा, तू जबसे हमारी ज़िंदगी में शामिल हुआ।
उल्फत में तेरी हम दिल हार बैठे हैं, अब खुद से जीत कर भी जायेंगे भी तो कहाँ जायेंगे…!
ऐलान-ऐ-इश्क़ तो हमने कर ही दिया है, ये आशिक़ी तो अब जान लेके ही जायेगी..!
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